आज मे बात कर रहा हू बुन्देलखण्ड के झांसी जिले के एतिहासिक आधयात्मिक व्यापारिक नगर बरुआ सागर के पूरब मे खडे पर्वत कैलाश की जो नगर को हमेशा साच्छात हिमालय के कैलाश पर्वत एवं उसी के समीप स्थित बरुआसागर झील मानसरोवर झील की अनुभूति कराती रहती हैं
मेरी पहली कैलाश पर्वत यात्रा यादे
बरुआ सागर नगर पर्वत की तलहटी में बसा होने के कारण दूर दूर से लगभग सभी घरों की छतों एवं मैदानो से पर्वत स्पष्ट दिखाई देता था और जब सुबह सुबह सूरज कैलाश से उदय होकर फैलाने वाली प्राकृतिक सुन्दरता हमेशा मन मे वहां पर पहुंच कर सब कुछ देखने की उत्सुखता हमेशा रहती थीं कि आखिर पर्वत के पीछे ऐसा क्या है जिससे यह सूरज निकलता हैं
आखिर मेरी उत्सुखता खत्म होने का समय आ गया वह था महाशिवरात्रि महापर्व जिस दिन कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले महात्मा जी के नेत्रत्व मे जन सहयोग से पूरे नगर मे शिव बारात निकाली जाती थीं जब शिव बारात मेरे घर से निकली उसमे मेरे साथ स्कूल मे पढने वाले कुछ बच्चे दिखाई दिये फिर क्या था हो लिया उनके साथ बारात समापन के समय सब लोगों की तरह पहली सीडी को छूकर सर पर लगाते हुए चढ गया उत्साहित होकर एक ओर डर था कि घर पर बिना बताये आया था पता चलने पिटाई पक्की थी पुछने पर कोई आने नही देता
जो होगा देखा जायेगा सोचकर चढ गया चोटी पर वहां का नजारा देख कर मन जोश एवं उत्साह से भर गया सबसे पहले मन हमेशा उठने वाले सबालो को शांत करने के लिये कैलाश पर्वत के पीछे के जेसे ही देखा देखते ही रह गया नीले पानी की विशाल झील उसी के साथ लगा
ऐतिहासिक किला एवं हरे भरे पेड़ पौधे व हरियाली झील के बीच टापू व दूसरी तरफ नगर के रंग विरंगे ऊचाई के कारण छोटे छोटे दिख रहे घर व लोग अलग ही दुनिया की अनुभूति करा रहे थे सच में वह जीवन का सुखद अनुभव हमेशा याद आता हैं
हम लोग बहुत ही भागयशाली है कि हमारा जन्म इस पावन धरा पर हुआ
जहा प्रकृति ने दिल खोलकर नदी तालाब पर्वत किला झील झरना नहरें जंगल बाग बागवानी के साथ शान्त एवं स्वस्थ जीवन जीने का आर्शीवाद व वरदान दिया