मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जयंती 2021
मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी में साहू ( तेली ) परिवार में हुआ था इनके माता पिता तेल व्यवसाई एवं धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे बचपन से ही कर्मा बाई श्री कृष्ण की अनंत भक्त थी भक्त शिरोमणि कर्मा बाई की जब विवाह योग्य हुई
तो इनका विवाह नरवर गढ़ में साधारण साहू परिवार में हुआ विवाह होने के बाद भी भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी श्री कृष्ण की भक्ति में हमेशा डूबी रहती थी उनकी श्री कृष्ण भक्ति को देखकर वहां सभी ओर उनकी ख्याति फैलने लगी
नरवर गढ़ का राजा क्रूर स्वभाव का था एक बार नरवर गढ़ के राजा के हाथी को खुजली हो गई मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी की श्री कृष्णा उपासना को देखकर वहां के स्थानीय
राजपुरोहित एव ब्राह्मण उन से ईर्ष्या करते थे जिसके कारण उन्होंने तेली समुदाय को अपमानित करने के लिए कुटिल चाल चली और राजा को सुझाव दिया कि यदि तेली समुदाय तेल से तालाब को भर दे और उसमें आपका हाथी स्नान कर ले तो हाथी कि खुजली दूर हो सकती है राजा ने आदेश दिया कि सभी तेली समुदाय तेल से तालाब भर दे वरना उन्हें देश निकाला कर दिया जाएगा और कड़ी सजा दी जाएगी इस आदेश को सुनकर स्थानीय तेली समुदाय में हाहाकार मच गया।
उनकी लाख कोशिश करने के बाद भी तेल से तालाब नहीं भर पाया तब सभी लोग व्याकुल हो गए और अपनी समस्या को लेकर
मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी के पास गए और उन्हें समस्या से अवगत कराया समाज के लोगों की विपत्ति को सुनकर मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी ने
भगवान श्री कृष्ण जी की स्तुति की और उनसे प्रार्थना की कि हमारे परिवार एवं समाज पर दया करें इस प्रार्थना के उपरांत यकायक भगवान श्री कृष्ण की कृपा से रातों-रात
तेल से पूरा तालाब भर गया राजपुरोहित एवं पंडित तेली समुदाय को अपमानित करने के लिए इंतजार कर रहे थे लेकिन सुबह होते ही माता ने राजा के पास अपने लोगों को संदेश देकर भिजवाया और कहा कि राजा अपने खुजली वाले हाथी को तालाब में नहला सकते हैं उनके संदेश से सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।
राजा ने अपने हाथी को तालाब में स्नान कराया एवं रात भर में भरे तेल से तालाब के इस चमत्कार की सूचना पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई अंत में राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह मां कर्मा बाई जी से क्षमा मांगने लगे लेकिन कर्मा बाई जी को राजपुरोहित और पंडितों के इस प्रकार के कृत्य से तेली समुदाय का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने नरवर गढ़ राज्य को त्यागने का निर्णय लिया भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी के साथ उनके सभी परिवार एवं क्षेत्र के तेली समुदाय साथ हो लिया।
विभिन्न जगह घूमते घूमते वह अपने आराध्य श्री कृष्ण के पावन धाम जगन्नाथ पुरी पहुंच गई वहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की जैसे ही माता मंदिर में पहुंची वहां के पंडितों एवं पुरोहितों द्वारा माता का तेली नीच जाति का कहकर अपमान किया जिससे माता को गहरा दुख हुआ और वह समुद्र किनारे पहुंचकर खिचड़ी का भोग लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे और साक्षात भगवान माता की गोद में आकर विराजमान हो गए
उधर जगन्नाथ पुरी मंदिर से श्री कृष्ण भगवान की प्रतिमा गायब होने के कारण हाहाकार मच गया वहां के राजपुरोहित एवं पंडितों को अपनी गलती का एहसास हुआ और भागते हुए समुद्र किनारे माता के पास पहुंचे और देखते ही दंग रह गए कि साक्षात भगवान उनके हाथों से खिचड़ी का भोग ग्रहण कर रहे हैं माता की इस महिमा को देखकर जगन्नाथ पुरी के राजा एवं राजपुरोहित द्वारा घोषणा की कि अब हमेशा जगन्नाथपुरी में मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी की खिचड़ी का प्रसाद ही लगाया जाएगा।
तभी से पूरे संसार में एक बात प्रचलित हो गई जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ ऐसी थी मां शिरोमणि कर्मा भाई जी की महिमा बोलिए भक्त शिरोमणि मा कर्मा बाई जी की जय।