मैं और मेरे मित्र अबध बिहारी जी गाता आज टहरौली के पास के गांव सिलोरी गये हुये थे
रास्ते में ही थे कि सामने से बारिश आती देख ठिठक कर रुक गये, सड़क के बगल बाले खेत मे एक टपरिया दिखी तो सोचा वहां थोड़ी देर ठहर लिया जाये बारिश से बचने के लिये
टपरिया के बाहर एक बुजुर्ग बैठे हुये थे तो हमने उनसे राम राम करते हुये कहा दादा पानी आ रहा है थोड़ी देर टपरिया में रुक लें ...
दादा तुरन्त खड़े होते हुये बोले " भगयाऔ बेटा "
बड़े सम्मान से उन्होंने अपनी टपरिया में बैठाया, बोले खेत रखाने परत बेटा ...
थोड़ी देर जब तक बारिश हुई यहां वहां की बातें होती रहीं जब हम वापस आने लगे तौ दादा बोले " बेटा भले आयते अच्छौ लगौ " .... हम लोगों ने दादा से राम राम करी और चले आये
बहुत छोटी और बहुत साधारण बात है यह,
यह एक दुनियां है......
यहीं एक और दूसरी दुनियां है व्यापारियों, बाजार और सौदेबाजों की दुनियां
जब हम शहर में किसी बड़े व्यापारी के प्रतिष्ठान के बाहर खड़े हो जाते हैं जिसकी आय महीने की लाखों में हो बस उससे हमें कोई काम न हो,,, वो वहीं गद्दी पर बैठे बैठे कह देता है हटो जाओ सामने से .... कुछ लेना देना नहीं तो आगे बड़ो
बड़े से बड़े प्रतिष्ठान पर जहां की शानदार बिल्डिंग हो, कांच और शानदार लाइटिंग हो, एयरकंडीशन हो ... वहां जा कर हम कहें कि थोड़ी देर ठहर सकते हैं बारिश हो रही है, या कहें कि प्यास लगी है पानी मिलेगा .... तो आंखें फाड़ के हमें देखा जायेगा .... कि अच्छे पागल हैं !
पैसों के अंबार पर बैठे लोग मानवता छोड़ कर सब इकट्ठा करने में लगे हैं,,, ख़ालिस इंसान की कोई कीमत नहीं ...
सारा जीवन आपाधापी -
बड़ा विस्तृत फैलाव व्यापार का,
बड़ा ऊंचा औहदा,
बड़ी राजनैतिक पद प्रतिष्ठा ....
और दिल इतना ओछा और छोटा कि किसी आम साधारण आदमी से हंस कर दो ओंठ बात नहीं कर सकते,
किसी से ह्रदय से भर के उसका हाल चाल नहीं पूंछ सकते, किसी से पानी की नहीं पूंछ सकते,,,
सच पूंछो तो आज के बड़े बहुत छोटे हैं ... !!!
हर बड़े चेहरे के पीछे बड़ा ह्रदय भी हो जरूरी नहीं है
बड़े तो अक्सर किसी खेत की मेड़ पर बैठ कर गायें चराते मिल जाते हैं ....
बस बड़ों को देखने के लिये हमारे पास खुले ह्रदय की आंख होना चाहिये
- आशीष उपाध्याय
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