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सोमवार, 9 अगस्त 2021

शिवलिंग क्या हैं...? एवं शिवलिंग का महत्त्व

                        !! ॐ नम: शिवाय !!

 संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है। और इसे देवों की वाणी भी कहा जाता हैं। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह प्रतीक होता हैं ।जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत में शिश्न कहा जाता हैं । शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। जैसा कि पुरुष लिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक, स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक ,और नपुंसक लिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। 


शिवलिंग क्या है़..? 

शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया हैं। स्कंद पुराण में कहा हैं। कि आकाश स्वयं लिंग हैं। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा अनंत सारे ब्रह्माण्ड (क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग हैं। शिवलिंग का अर्थ अनंत होता हैं। अर्थात जिसका कोई अंत नहीं हैं और ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता। दरअसल यह गलत फहमी भाषा के रुपांतरण और मलेच्छों यवनों के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथो को नष्ट कर दिये जाने तथा बाद मे षडयंत्रकारी अंग्रेजो के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हैं।

 जैसा कि हम सभी लोग जानते है कि एक ही शब्दों के विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं । उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द "सूत्र" को ही ले ले तो , सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता हैं । जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।

 उसी प्रकार "अर्थ" शब्द का भावार्थ :  सम्पति भी हो सकता हैं , और मतलब (अर्थात्..मीनिंग) भी होता है। 

ठिक बिल्कुल उसी  प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से  अभिप्राय , चिन्ह, निशानी , गुण, व्यवहार या प्रतीक है़। धरती उसका पीठ या आधार हैं।और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया हैं। तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया हैं । जैसे :- प्रकाश स्तंभ, अग्नि स्तंभ, उर्जा स्तंभ, ब्रह्माण्डीय स्तंभ ।

ब्रह्माण्ड में सभी चीजे है। ऊर्जा और पदार्थ से निर्मित हैं और आत्मा ऊर्जा हैं। इसी प्रकार शिव, पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर शिवलिंग कहलाते हैं । ब्रह्माण्ड में उपस्थित ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है़। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्माण्ड की आकृति हैं। 

शिव लिंग भगवान शिव और देवी शक्ति का आदि-अनादी एकल रुप हैं तथा पुरुष और प्रकृति का समानता का प्रतिक भी हैं। अर्थात इस संसार मे न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व हैं अर्थात दोनो समान हैं ।

 सनातन धर्म के ग्रन्थों में  त्यौहार, विज्ञान की आधार शिला देखने को मिलती है़। जो कि हमारे पुर्वजों, संतो, ऋषियों, मुनियों तपस्वियों की देन हैं। आज के समय मे विज्ञान भी हमारे हिंदू संस्कृती एवं ग्रंथों पर रिसर्च कर रहा हैं।

 योनी का संस्कृत में अर्थ प्रादुभार्व ,प्रकटीकरण होता हैं। जबकी हिंदू धर्म में 84 लाख योनी बताई जाती हैं। यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं।अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया हैं कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़,कीट,जानवर,मनुष्य आदि) हैं।

 अब बात करते है मनुष्य योनी की 

पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनी होता हैं। अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनी शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता हैं।

 अर्थात् लिंग का तात्पर्य प्रतिक से हैं शिवलिंग का मतलब हैं पवित्रता का प्रतीक ।


दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इसकी शुरुआत हुई , बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं । हवा में दीपक कि ज्योति टिमटिमा जाती हैं।और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती हैं। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरुप शिवलिंग का निर्माण किया गया।


मंगलवार, 16 मार्च 2021

भगवान और भक्त के बीच का अदम्य प्रेम

 मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जयंती 2021 



मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी में साहू ( तेली ) परिवार में हुआ था इनके माता पिता तेल व्यवसाई एवं धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे बचपन से ही कर्मा बाई श्री कृष्ण की अनंत भक्त थी भक्त शिरोमणि कर्मा बाई की जब विवाह योग्य हुई


तो इनका विवाह नरवर गढ़ में साधारण साहू परिवार में हुआ विवाह होने के बाद भी भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी श्री कृष्ण की भक्ति में हमेशा डूबी रहती थी उनकी श्री कृष्ण भक्ति को देखकर वहां सभी ओर उनकी ख्याति फैलने लगी


नरवर गढ़ का राजा क्रूर स्वभाव का था एक बार नरवर गढ़ के राजा के हाथी को खुजली हो गई मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी की श्री कृष्णा उपासना को देखकर वहां के स्थानीय


राजपुरोहित एव ब्राह्मण उन से ईर्ष्या करते थे जिसके कारण उन्होंने तेली समुदाय को अपमानित करने के लिए कुटिल चाल चली और राजा को सुझाव दिया कि यदि तेली समुदाय तेल से तालाब को भर दे और उसमें आपका हाथी स्नान कर ले तो हाथी कि खुजली दूर हो सकती है राजा ने आदेश दिया कि सभी तेली समुदाय तेल से तालाब भर दे वरना उन्हें देश निकाला कर दिया जाएगा और कड़ी सजा दी जाएगी इस आदेश को सुनकर स्थानीय तेली समुदाय में हाहाकार मच गया।


उनकी लाख कोशिश करने के बाद भी तेल से तालाब नहीं भर पाया तब सभी लोग व्याकुल हो गए और अपनी समस्या को लेकर


मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी के पास गए और उन्हें समस्या से अवगत कराया समाज के लोगों की विपत्ति को सुनकर मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी ने


भगवान श्री कृष्ण जी की स्तुति की और उनसे प्रार्थना की कि हमारे परिवार एवं समाज पर दया करें इस प्रार्थना के उपरांत यकायक भगवान श्री कृष्ण की कृपा से रातों-रात


तेल से पूरा तालाब भर गया राजपुरोहित एवं पंडित तेली समुदाय को अपमानित करने के लिए इंतजार कर रहे थे लेकिन सुबह होते ही माता ने राजा के पास अपने लोगों को संदेश देकर भिजवाया और कहा कि राजा अपने खुजली वाले हाथी को तालाब में नहला सकते हैं उनके संदेश से सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।


राजा ने अपने हाथी को तालाब में स्नान कराया एवं रात भर में भरे तेल से तालाब के इस चमत्कार की सूचना पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई अंत में राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह मां कर्मा बाई जी से क्षमा मांगने लगे लेकिन कर्मा बाई जी को राजपुरोहित और पंडितों के इस प्रकार के कृत्य से तेली समुदाय का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने नरवर गढ़ राज्य को त्यागने का निर्णय लिया भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी के साथ उनके सभी परिवार एवं क्षेत्र के तेली समुदाय साथ हो लिया।


विभिन्न जगह घूमते घूमते वह अपने आराध्य श्री कृष्ण के पावन धाम जगन्नाथ पुरी पहुंच गई वहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की जैसे ही माता मंदिर में पहुंची वहां के पंडितों एवं पुरोहितों द्वारा माता का तेली नीच जाति का कहकर अपमान किया जिससे माता को गहरा दुख हुआ और वह समुद्र किनारे पहुंचकर खिचड़ी का भोग लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे और साक्षात भगवान माता की गोद में आकर विराजमान हो गए


उधर जगन्नाथ पुरी मंदिर से श्री कृष्ण भगवान की प्रतिमा गायब होने के कारण हाहाकार मच गया वहां के राजपुरोहित एवं पंडितों को अपनी गलती का एहसास हुआ और भागते हुए समुद्र किनारे माता के पास पहुंचे और देखते ही दंग रह गए कि साक्षात भगवान उनके हाथों से खिचड़ी का भोग ग्रहण कर रहे हैं माता की इस महिमा को देखकर जगन्नाथ पुरी के राजा एवं राजपुरोहित द्वारा घोषणा की कि अब हमेशा जगन्नाथपुरी में मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी की खिचड़ी का प्रसाद ही लगाया जाएगा।


तभी से पूरे संसार में एक बात प्रचलित हो गई जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ ऐसी थी मां शिरोमणि कर्मा भाई जी की महिमा बोलिए भक्त शिरोमणि मा कर्मा बाई जी की जय।


आप सभी साहू ( तेली ) बंधुओं से निवेदन है कि आगामी  7 अप्रैल को माँ कर्मा बाई जयंती पर देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाएं जयंती,

बुधवार, 13 जनवरी 2021

मकर संक्रांति का महत्व एवं सूर्य देव की उपासना

 

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां मानी गई हैं। उनमें एक मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महात्तम यह है कि सूर्य के उत्तरायण होने को मकर संक्रांति कहते हैं। इसे हिंदुओं का बड़ा त्यौहार भी माना जाता है। यह पर्व शीत ऋतु के जाने तथा मनोहरी बसंत के आगमन का प्रतीक है। इसे भगवान सूर्य देव की उपासना और स्नान ध्यान का पर्व भी मनाते हैं। इसे पूरे देश में बड़ी श्रद्धा उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार यशोदा माता ने इस दिन श्रीकृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखा था। उसी दिन मकर संक्रांति के व्रत की परिपाटी चली आ रही है। पुराणों में वर्णित है कि सूर्य के मकर राशि में होने से मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है अर्थात आत्मा को जन्म मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत काल में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामह ने गंगा के तट पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को 26 दिनों का इंतजार किया था। इच्छा मृत्यु का वरदान मिलने के कारण वह मोक्ष की प्राप्ति के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक जीवित रहे। श्री पदम पुराण में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन किया गया दान अक्षय पुण्य देने वाला है और पाप नाशक है 


इसलिए तिल गुड़ के व्यंजन ऊनी वस्त्र कंबल काले तिल आदि दान करने की परंपरा है। मकर संक्रांति के हर 12 वर्ष प्रयाग उज्जैन हरिद्वार और नासिक कुंभ में मेला लगता है। जहां समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की कुछ बूंदें गिरी थी। इस पर्व पर दक्षिण भारत में बालकों विद्याधन प्रारंभ कराया था। प्राचीन रूप में इस खजूर अजीत तथा शहद बांटने की प्रथा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्राति का पर्व पंजाब में लोहड़ी दक्षिण में पूगल मध्य प्रदेश व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संक्रात पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार में खड़ी के नाम से जाना जाता है।

इस त्यौहार को लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं मकर संक्रांति के दिन लोगों द्वारा आसमान की ऊंचाइयों में कागज की पतंग उड़ा कर इस त्योहार को यादगार बनाते हैं

बारिश के मौसम में - दादा बोले भगयाऔ बेटा

मैं और मेरे मित्र अबध बिहारी जी गाता आज टहरौली के पास के गांव सिलोरी गये हुये थे रास्ते में ही थे कि सामने से बारिश आती देख ठिठक कर रुक गये,...