!! ॐ नम: शिवाय !!
संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है। और इसे देवों की वाणी भी कहा जाता हैं। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह प्रतीक होता हैं ।जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत में शिश्न कहा जाता हैं । शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। जैसा कि पुरुष लिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक, स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक ,और नपुंसक लिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक।
शिवलिंग क्या है़..?
शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया हैं। स्कंद पुराण में कहा हैं। कि आकाश स्वयं लिंग हैं। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा अनंत सारे ब्रह्माण्ड (क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग हैं। शिवलिंग का अर्थ अनंत होता हैं। अर्थात जिसका कोई अंत नहीं हैं और ना ही शुरुआत।
शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता। दरअसल यह गलत फहमी भाषा के रुपांतरण और मलेच्छों यवनों के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथो को नष्ट कर दिये जाने तथा बाद मे षडयंत्रकारी अंग्रेजो के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हैं।
जैसा कि हम सभी लोग जानते है कि एक ही शब्दों के विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं । उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द "सूत्र" को ही ले ले तो , सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता हैं । जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।
उसी प्रकार "अर्थ" शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता हैं , और मतलब (अर्थात्..मीनिंग) भी होता है।
ठिक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय , चिन्ह, निशानी , गुण, व्यवहार या प्रतीक है़। धरती उसका पीठ या आधार हैं।और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया हैं। तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया हैं । जैसे :- प्रकाश स्तंभ, अग्नि स्तंभ, उर्जा स्तंभ, ब्रह्माण्डीय स्तंभ ।
ब्रह्माण्ड में सभी चीजे है। ऊर्जा और पदार्थ से निर्मित हैं और आत्मा ऊर्जा हैं। इसी प्रकार शिव, पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर शिवलिंग कहलाते हैं । ब्रह्माण्ड में उपस्थित ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है़। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्माण्ड की आकृति हैं।
शिव लिंग भगवान शिव और देवी शक्ति का आदि-अनादी एकल रुप हैं तथा पुरुष और प्रकृति का समानता का प्रतिक भी हैं। अर्थात इस संसार मे न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व हैं अर्थात दोनो समान हैं ।
सनातन धर्म के ग्रन्थों में त्यौहार, विज्ञान की आधार शिला देखने को मिलती है़। जो कि हमारे पुर्वजों, संतो, ऋषियों, मुनियों तपस्वियों की देन हैं। आज के समय मे विज्ञान भी हमारे हिंदू संस्कृती एवं ग्रंथों पर रिसर्च कर रहा हैं।
योनी का संस्कृत में अर्थ प्रादुभार्व ,प्रकटीकरण होता हैं। जबकी हिंदू धर्म में 84 लाख योनी बताई जाती हैं। यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं।अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया हैं कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़,कीट,जानवर,मनुष्य आदि) हैं।
अब बात करते है मनुष्य योनी की
पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनी होता हैं। अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनी शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता हैं।
अर्थात् लिंग का तात्पर्य प्रतिक से हैं शिवलिंग का मतलब हैं पवित्रता का प्रतीक ।
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