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बुधवार, 31 जुलाई 2024

बारिश के मौसम में - दादा बोले भगयाऔ बेटा


मैं और मेरे मित्र अबध बिहारी जी गाता आज टहरौली के पास के गांव सिलोरी गये हुये थे

रास्ते में ही थे कि सामने से बारिश आती देख ठिठक कर रुक गये, सड़क के बगल बाले खेत मे एक टपरिया दिखी तो सोचा वहां थोड़ी देर ठहर लिया जाये बारिश से बचने के लिये


टपरिया के बाहर एक बुजुर्ग बैठे हुये थे तो हमने उनसे राम राम करते हुये कहा दादा पानी आ रहा है थोड़ी देर टपरिया में रुक लें ... 


दादा तुरन्त खड़े होते हुये बोले " भगयाऔ बेटा "


बड़े सम्मान से उन्होंने अपनी टपरिया में बैठाया, बोले खेत रखाने परत बेटा ... 

थोड़ी देर जब तक बारिश हुई यहां वहां की बातें होती रहीं जब हम वापस आने लगे तौ दादा बोले " बेटा भले आयते अच्छौ लगौ " .... हम लोगों ने दादा से राम राम करी और चले आये 


बहुत छोटी और बहुत साधारण बात है यह,

यह एक दुनियां है......   


यहीं एक और दूसरी दुनियां है व्यापारियों, बाजार और सौदेबाजों की दुनियां


जब हम शहर में किसी बड़े व्यापारी के प्रतिष्ठान के बाहर खड़े हो जाते हैं जिसकी आय महीने की लाखों में हो बस उससे हमें कोई काम न हो,,, वो वहीं गद्दी पर बैठे बैठे कह देता  है हटो जाओ सामने से .... कुछ लेना देना नहीं तो आगे बड़ो 

बड़े से बड़े प्रतिष्ठान पर जहां की शानदार बिल्डिंग हो, कांच और शानदार लाइटिंग हो, एयरकंडीशन हो ... वहां जा कर हम कहें कि थोड़ी देर ठहर सकते हैं बारिश हो रही है, या कहें कि प्यास लगी है पानी मिलेगा ....  तो आंखें फाड़ के हमें देखा जायेगा .... कि अच्छे पागल हैं !


पैसों के अंबार पर बैठे लोग मानवता छोड़ कर सब इकट्ठा करने में लगे हैं,,,  ख़ालिस इंसान की कोई कीमत नहीं ... 


सारा जीवन आपाधापी - 

बड़ा विस्तृत फैलाव व्यापार का, 

बड़ा ऊंचा औहदा, 

बड़ी राजनैतिक पद प्रतिष्ठा ....  

और दिल इतना ओछा और छोटा कि किसी आम साधारण आदमी से हंस कर दो ओंठ बात नहीं कर सकते, 

किसी से ह्रदय से भर के उसका हाल चाल नहीं पूंछ सकते, किसी से पानी की नहीं पूंछ सकते,,,   


सच पूंछो तो आज के बड़े बहुत छोटे हैं ...  !!!


हर बड़े चेहरे के पीछे बड़ा ह्रदय भी हो जरूरी नहीं है


बड़े तो अक्सर किसी खेत की मेड़ पर बैठ कर गायें चराते मिल जाते हैं .... 

बस बड़ों को देखने के लिये हमारे पास खुले ह्रदय की आंख होना चाहिये 


- आशीष उपाध्याय 


शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

बरुआसागर ऐतिहासिक नगर में हुआ विराट दंगल का आयोजन

 आजादी के 75 वे अमृत महोत्सव कार्यक्रम  के अंतर्गत हर घर तिरंगा एवं विराट दंगल का आयोजन  नगर पालिका परिषद बरुआसागर के तत्वावधान में रक्षाबंधन पर्व के अवसर उपजिलाधिकारी सदर सान्या छावड़ा ने फीता काटकर किया।

 इस अवसर पर उन्होंने दिल्ली, हरियाणा, मेरठ  आदि स्थानों से आये राष्ट्रीय स्तर के महिला एवं पुरुष पहलवानों द्वारा विराट दंगल कुश्ती का प्रदर्शन किले के समीप तालाब बांध पर दंगल अखाड़ा मैदान में किया गया। मुख्य आतिथ्य  एवं विशिष्ट अतिथियों ने पहलवानों से परिचय प्राप्त कर कुश्तियों का प्रदर्शन देखा। 

विराट दंगल में पुरुष कुश्ती में मानसिंह ग्वालियर , दीपक ग्वालियर, विजय यादव, राज यादव, धनंजय, राजदीप, प्रदीप,  बलू  विजयी हुए  एवं राजा और छोटू, अमित एवम राजवीर, सतीश राधेश्याम, नीलेश प्रह्लाद, शिवम कपिल, गुड्डू नितेश, गजेंद्र प्रदीप, शिवम जीतू, शैतानसिंह श्याम, कौशल रवि,  का मुकाबला बराबरी का रहा।

महिला पहलवानों में दीक्षा तोमर मेरठ, मनु तोमर राजस्थान विजयी रही । पुरूष एवं महिला पहलवानों ने अपनी अपनी कुश्ती कला का प्रदर्शन कर लोगों को कुश्तियों के प्रति आकर्षित किया।

दंगल का शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि छावड़ा ने कहा कि दंगल का आयोजन सराहनीय नेक कार्य हैं। कुश्ती प्रतियोगिता परम्परायें भारत मे प्राचीन काल से चली आ रही हैं। इस कला से लोगों का मनोरंजन के साथ साथ पहलवानों का स्वस्थ्यवर्धन होने के साथ साथ कला का प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त होता हैं। उन्होंने पहलवानों को शुभकामनाएं देते हुए विजयी भव का आर्शीवाद दिया।

दंगल के विशिष्ट अतिथि राकेश सुडेले एवं शिवप्रसाद अग्रवाल एवं अतिथि नपा अध्यक्षा प्रतिनिधि ओमी कुशवाहा, डॉ महादेव बाजपेयी रहे। तथा अध्यक्षता नगर पालिका परिषद अध्यक्षा श्रीमती हरदेवी ओमी कुशवाहा ने की।

निर्वायक मण्डल रेफरी मेहरबान सिंह एवं चंद्र प्रकाश राय रहे।

 कार्यक्रम में नपा अध्यक्षा प्रतिनिधि ओमी कुशवाहा , पीर मोहम्मद , डॉ महादेव प्रसाद बाजपेयी, अवर अभियंता/ दंगल मेला प्रभारी विकास साहू, लिपिक कौशल राय, अमोक श्रीवास्तव, रामस्वरूप अहिरवार, कपूर सिंह कुशवाहा, जाकिर अली , सुनील कुमार वर्मा, विकास शर्मा, नीरज पांडेय, गोपाल अग्रवाल, राहुल बिरथरे, राजेश श्रीवास, संजीव अग्रवाल, देवेंद्र सिंह यादव,  विकास रायकवार, सावन, रविन्द्र, महबूब खान, सतीश यादव, कैलाश कुशवाहा, पुरुषोत्तम, hello पार्षद पप्पू रायकवार, जितेंद्र आर्य, नारायण दास, मनोनीत पार्षद काशीराम अहिरवार, एवं रामसेवक कुशवाहा, राजेश राय पार्षद प्रतिनिधि, अखिलेश शर्मा आदि पार्षद ,गणमान्य नागरिक आदि  उपस्थित रहे।

संचालन नपा लिपिक संदीप सैंगर 

एवं नपा अधिशासी अधिकारी श्रीमती कल्पना शर्मा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

शिवलिंग क्या हैं...? एवं शिवलिंग का महत्त्व

                        !! ॐ नम: शिवाय !!

 संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है। और इसे देवों की वाणी भी कहा जाता हैं। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह प्रतीक होता हैं ।जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत में शिश्न कहा जाता हैं । शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। जैसा कि पुरुष लिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक, स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक ,और नपुंसक लिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। 


शिवलिंग क्या है़..? 

शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया हैं। स्कंद पुराण में कहा हैं। कि आकाश स्वयं लिंग हैं। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा अनंत सारे ब्रह्माण्ड (क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही लिंग हैं। शिवलिंग का अर्थ अनंत होता हैं। अर्थात जिसका कोई अंत नहीं हैं और ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता। दरअसल यह गलत फहमी भाषा के रुपांतरण और मलेच्छों यवनों के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथो को नष्ट कर दिये जाने तथा बाद मे षडयंत्रकारी अंग्रेजो के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हैं।

 जैसा कि हम सभी लोग जानते है कि एक ही शब्दों के विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं । उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द "सूत्र" को ही ले ले तो , सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता हैं । जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।

 उसी प्रकार "अर्थ" शब्द का भावार्थ :  सम्पति भी हो सकता हैं , और मतलब (अर्थात्..मीनिंग) भी होता है। 

ठिक बिल्कुल उसी  प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से  अभिप्राय , चिन्ह, निशानी , गुण, व्यवहार या प्रतीक है़। धरती उसका पीठ या आधार हैं।और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया हैं। तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया हैं । जैसे :- प्रकाश स्तंभ, अग्नि स्तंभ, उर्जा स्तंभ, ब्रह्माण्डीय स्तंभ ।

ब्रह्माण्ड में सभी चीजे है। ऊर्जा और पदार्थ से निर्मित हैं और आत्मा ऊर्जा हैं। इसी प्रकार शिव, पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर शिवलिंग कहलाते हैं । ब्रह्माण्ड में उपस्थित ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है़। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्माण्ड की आकृति हैं। 

शिव लिंग भगवान शिव और देवी शक्ति का आदि-अनादी एकल रुप हैं तथा पुरुष और प्रकृति का समानता का प्रतिक भी हैं। अर्थात इस संसार मे न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व हैं अर्थात दोनो समान हैं ।

 सनातन धर्म के ग्रन्थों में  त्यौहार, विज्ञान की आधार शिला देखने को मिलती है़। जो कि हमारे पुर्वजों, संतो, ऋषियों, मुनियों तपस्वियों की देन हैं। आज के समय मे विज्ञान भी हमारे हिंदू संस्कृती एवं ग्रंथों पर रिसर्च कर रहा हैं।

 योनी का संस्कृत में अर्थ प्रादुभार्व ,प्रकटीकरण होता हैं। जबकी हिंदू धर्म में 84 लाख योनी बताई जाती हैं। यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं।अब तो वैज्ञानिको ने भी मान लिया हैं कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़,कीट,जानवर,मनुष्य आदि) हैं।

 अब बात करते है मनुष्य योनी की 

पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनी होता हैं। अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनी शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता हैं।

 अर्थात् लिंग का तात्पर्य प्रतिक से हैं शिवलिंग का मतलब हैं पवित्रता का प्रतीक ।


दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इसकी शुरुआत हुई , बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं । हवा में दीपक कि ज्योति टिमटिमा जाती हैं।और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती हैं। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरुप शिवलिंग का निर्माण किया गया।


मंगलवार, 16 मार्च 2021

भगवान और भक्त के बीच का अदम्य प्रेम

 मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जयंती 2021 



मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी में साहू ( तेली ) परिवार में हुआ था इनके माता पिता तेल व्यवसाई एवं धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे बचपन से ही कर्मा बाई श्री कृष्ण की अनंत भक्त थी भक्त शिरोमणि कर्मा बाई की जब विवाह योग्य हुई


तो इनका विवाह नरवर गढ़ में साधारण साहू परिवार में हुआ विवाह होने के बाद भी भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी श्री कृष्ण की भक्ति में हमेशा डूबी रहती थी उनकी श्री कृष्ण भक्ति को देखकर वहां सभी ओर उनकी ख्याति फैलने लगी


नरवर गढ़ का राजा क्रूर स्वभाव का था एक बार नरवर गढ़ के राजा के हाथी को खुजली हो गई मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी की श्री कृष्णा उपासना को देखकर वहां के स्थानीय


राजपुरोहित एव ब्राह्मण उन से ईर्ष्या करते थे जिसके कारण उन्होंने तेली समुदाय को अपमानित करने के लिए कुटिल चाल चली और राजा को सुझाव दिया कि यदि तेली समुदाय तेल से तालाब को भर दे और उसमें आपका हाथी स्नान कर ले तो हाथी कि खुजली दूर हो सकती है राजा ने आदेश दिया कि सभी तेली समुदाय तेल से तालाब भर दे वरना उन्हें देश निकाला कर दिया जाएगा और कड़ी सजा दी जाएगी इस आदेश को सुनकर स्थानीय तेली समुदाय में हाहाकार मच गया।


उनकी लाख कोशिश करने के बाद भी तेल से तालाब नहीं भर पाया तब सभी लोग व्याकुल हो गए और अपनी समस्या को लेकर


मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी के पास गए और उन्हें समस्या से अवगत कराया समाज के लोगों की विपत्ति को सुनकर मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी ने


भगवान श्री कृष्ण जी की स्तुति की और उनसे प्रार्थना की कि हमारे परिवार एवं समाज पर दया करें इस प्रार्थना के उपरांत यकायक भगवान श्री कृष्ण की कृपा से रातों-रात


तेल से पूरा तालाब भर गया राजपुरोहित एवं पंडित तेली समुदाय को अपमानित करने के लिए इंतजार कर रहे थे लेकिन सुबह होते ही माता ने राजा के पास अपने लोगों को संदेश देकर भिजवाया और कहा कि राजा अपने खुजली वाले हाथी को तालाब में नहला सकते हैं उनके संदेश से सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।


राजा ने अपने हाथी को तालाब में स्नान कराया एवं रात भर में भरे तेल से तालाब के इस चमत्कार की सूचना पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई अंत में राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह मां कर्मा बाई जी से क्षमा मांगने लगे लेकिन कर्मा बाई जी को राजपुरोहित और पंडितों के इस प्रकार के कृत्य से तेली समुदाय का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने नरवर गढ़ राज्य को त्यागने का निर्णय लिया भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी के साथ उनके सभी परिवार एवं क्षेत्र के तेली समुदाय साथ हो लिया।


विभिन्न जगह घूमते घूमते वह अपने आराध्य श्री कृष्ण के पावन धाम जगन्नाथ पुरी पहुंच गई वहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की जैसे ही माता मंदिर में पहुंची वहां के पंडितों एवं पुरोहितों द्वारा माता का तेली नीच जाति का कहकर अपमान किया जिससे माता को गहरा दुख हुआ और वह समुद्र किनारे पहुंचकर खिचड़ी का भोग लगाकर भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे और साक्षात भगवान माता की गोद में आकर विराजमान हो गए


उधर जगन्नाथ पुरी मंदिर से श्री कृष्ण भगवान की प्रतिमा गायब होने के कारण हाहाकार मच गया वहां के राजपुरोहित एवं पंडितों को अपनी गलती का एहसास हुआ और भागते हुए समुद्र किनारे माता के पास पहुंचे और देखते ही दंग रह गए कि साक्षात भगवान उनके हाथों से खिचड़ी का भोग ग्रहण कर रहे हैं माता की इस महिमा को देखकर जगन्नाथ पुरी के राजा एवं राजपुरोहित द्वारा घोषणा की कि अब हमेशा जगन्नाथपुरी में मां भक्त शिरोमणि कर्मा बाई जी की खिचड़ी का प्रसाद ही लगाया जाएगा।


तभी से पूरे संसार में एक बात प्रचलित हो गई जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ ऐसी थी मां शिरोमणि कर्मा भाई जी की महिमा बोलिए भक्त शिरोमणि मा कर्मा बाई जी की जय।


आप सभी साहू ( तेली ) बंधुओं से निवेदन है कि आगामी  7 अप्रैल को माँ कर्मा बाई जयंती पर देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाएं जयंती,

बुधवार, 13 जनवरी 2021

मकर संक्रांति का महत्व एवं सूर्य देव की उपासना

 

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां मानी गई हैं। उनमें एक मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महात्तम यह है कि सूर्य के उत्तरायण होने को मकर संक्रांति कहते हैं। इसे हिंदुओं का बड़ा त्यौहार भी माना जाता है। यह पर्व शीत ऋतु के जाने तथा मनोहरी बसंत के आगमन का प्रतीक है। इसे भगवान सूर्य देव की उपासना और स्नान ध्यान का पर्व भी मनाते हैं। इसे पूरे देश में बड़ी श्रद्धा उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार यशोदा माता ने इस दिन श्रीकृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखा था। उसी दिन मकर संक्रांति के व्रत की परिपाटी चली आ रही है। पुराणों में वर्णित है कि सूर्य के मकर राशि में होने से मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है अर्थात आत्मा को जन्म मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत काल में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामह ने गंगा के तट पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश को 26 दिनों का इंतजार किया था। इच्छा मृत्यु का वरदान मिलने के कारण वह मोक्ष की प्राप्ति के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक जीवित रहे। श्री पदम पुराण में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन किया गया दान अक्षय पुण्य देने वाला है और पाप नाशक है 


इसलिए तिल गुड़ के व्यंजन ऊनी वस्त्र कंबल काले तिल आदि दान करने की परंपरा है। मकर संक्रांति के हर 12 वर्ष प्रयाग उज्जैन हरिद्वार और नासिक कुंभ में मेला लगता है। जहां समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की कुछ बूंदें गिरी थी। इस पर्व पर दक्षिण भारत में बालकों विद्याधन प्रारंभ कराया था। प्राचीन रूप में इस खजूर अजीत तथा शहद बांटने की प्रथा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्राति का पर्व पंजाब में लोहड़ी दक्षिण में पूगल मध्य प्रदेश व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संक्रात पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार में खड़ी के नाम से जाना जाता है।

इस त्यौहार को लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं मकर संक्रांति के दिन लोगों द्वारा आसमान की ऊंचाइयों में कागज की पतंग उड़ा कर इस त्योहार को यादगार बनाते हैं

मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

बरुआसागर नगर का पुस्तकालय जहां से सैकड़ों छात्रों ने सफलता अर्जित की है

 

बरुआसागर में स्थित नगर पालिका द्वारा संचालित पुस्तकालय जो नगर के युवाओं के लिए एक ज्ञान अर्जित करने के लिए मुख्य केंद्र है इस पुस्तकालय से लाभ उठाकर डेढ़ सैकड़ा से अधिक छात्रों ने सरकारी एवं गैर सरकारीयों परीक्षाओं में सफलता हासिल करके अपना कैरियर बनाया है नगर के युवाओं की विशेष मांग पर नगर के संभ्रांत नागरिक पूर्व मुख्य सचिव पश्चिम बंगाल प्रमोद कुमार अग्रवाल आई ए एस के प्रयासों से नगर में पुस्तकालय का निर्माण कराया गया था जो नगर पालिका द्वारा संचालित हो रहा है इस पुस्तकालय में लगभग सभी कंपटीशन समाचार पत्र पत्रिकाएं ज्ञानवर्धक पुस्तकें कैरियर से संबंधित रोजगार पत्र निशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं जिसका लाभ नगर के अनेक छात्र युवा एवं बुजुर्ग विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान अर्जित कर के उठा रहे हैं इस लाइब्रेरी में उच्च स्तर के साहित्य फर्नीचर बैठने की उत्तम व्यवस्था स्वच्छ वातावरण होने के कारण पढ़ने वाले छात्र छात्राएं ऑटोमेटिक खींचे चले आते हैं  वर्तमान में नवीन युवा पीढ़ी एवं संचार क्रांति से बदले माहौल एवं सरकारी बा गैर सरकारी संस्थाओं में नौकरियों की कमी के कारण छात्रों का रुझान पढ़ाई से हटा है जिस कारण लोग लाइब्रेरी में ना आकर घरों में ही कंप्यूटर एवं मोबाइल से अपनी तैयारी कर रहे हैं यहां निशुल्क पुस्तकें एवं सलाह मिलने के बाद भी छात्रों एवं युवाओं का रुझान विभिन्न कोचिंग संस्थानों एवं ऑनलाइन कोचिंग एडवाइजर की ओर जा रहा है जिसका मुख्य कारण इस पुस्तकालय का प्रचार प्रसार सही रूप से ना होना एवं पेशेवर लाइब्रेरियन की नियुक्ति ना होने के कारण प्रमुख है छात्रों युवाओं एवं जागरूक लोगों से अनुरोध है कि इस पुस्तकालय का अधिक से अधिक लाभ उठाएं क्योंकि इस पुस्तकालय पर नगर का बजट खर्च किया जाता है लेकिन लाभार्थी ना होने के कारण यह पुस्तकालय सफेद हाथी बना हुआ है इसलिए लोग अधिक से अधिक संख्या में पुस्तकालय में पहुंचकर ज्ञान का सदुपयोग करें एवं नगर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान निभाए

बारिश के मौसम में - दादा बोले भगयाऔ बेटा

मैं और मेरे मित्र अबध बिहारी जी गाता आज टहरौली के पास के गांव सिलोरी गये हुये थे रास्ते में ही थे कि सामने से बारिश आती देख ठिठक कर रुक गये,...